चीकू आज बहुत खुश था। आज रात उसे ओढ़ने के लिए पूरा कम्बल जो मिलने वाला था। रोज़ रोज़ लाली से कम्बल की खींचा तानी से वो परेशान हो गया था। एक तो फटा हुआ कम्बल, तिस पर दो लोग उसे ओढ़ें तो ठण्ड से बचाव कैसे हो भला?
शाम को ही एक बड़ी गाडी उनके झोपड़े के बाहर आकर रुकी थी और एक गुड़िया सी दिखने वाली लड़की ने अपनी माँ के साथ बस्ती में कम्बल बांटे थे। उनके घर भी चार कम्बल आये थे। तब से चीकू नए कम्बल में सोने के मंसूबे बना रहा था। उसने पूरा हिसाब लगाया था। एक कम्बल बाबा लेंगे, के माँ लेगी। मुनिया तो माँ के साथ ही डूबकर सोती है, सो उसके लिए अलग कम्बल कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी। बाकी बचे दो कम्बल उसे और लाली को ही मिलेंगे। यानि अब वे पूरा पूरा कम्बल ओढ़ पाएंगे। चीकू ने तो मन ही मन पुराना कम्बल ही हथियाने की बात सोच ली थी। उसने तय कर लिए था की पुराना वाला कम्बल वो नीचे बिछा लेगा। फिर तो ठण्ड का एहसास भी नहीं होगा। खाली चादर पर सोने से तो ठण्ड सीधे रीढ़ की हड्डी में घुसती महसूस होती है।
जैसे जैसे शाम ढाल रही थी वैसे वैसे चीकू कि ख़ुशी बढ़ती जा रही थी। आज तो उसने खाने के लिए भी लाली से झगड़ा नहीं किया था, बल्कि मुनिया को अपनी बची हुई दाल भी दे दी थी। लेकिन रात होते होते उसने देखा कि माँ ने एक धूलि चादर निकलकर उसमे वो कम्बल बाँध दिए हैं। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बाबा भी अपना पुराना कम्बल लेकर लेट गए थे और माँ भी नए कम्बल संभालकर रखने के बाद मुनिया को चिपटकर सोने कि तयारी कर रही थी। लाली भी बिना किसी उम्मीद के पुराना कम्बल ओढ़कर लेट चुकी थी और साथ ही साथ बोले जा रही थी, आज अगर तूने कम्बल खींचा तो मुक्का मार दूंगी।
आखिर माँ ने जब देखा कि चीकू परेशां हाल में एकटक उन्ही नए कम्बलों के गठर को देख रहा है, तो उसने चीकू को पास बुलाया और बड़े प्यार से सर पर हाथ फिराते हुए बोली, बेटा हमारे नसीब में तो ये फटे कम्बल ही हैं। इन नए कम्बलों को कल तेरे बाबा बाज़ार में बेच आयेंगे, तब जाकर अगले हफ्ते का राशन आ सकेगा। ठण्ड की चुभन तो सिर्फ रात को परेशां करती है, लेकिन पेट कि आग न बुझी तो एक एक पल काटना मुश्किल हो जाएगा।
चीकू समझ गया था कि उसे अब नए कम्बल के लिए अगले साल का इंतज़ार करना होगा।
poor chiku.. aapne bhut hi bhavukta purn tarikese gariboki shtipar likha hai..
ReplyDeletetouchy indeed
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