Friday, November 29, 2013

थैंक्स गिविंग

मेरा दोस्त है शिशिर। अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया शहर में रहता है।  कल उसका दोपहर को फ़ोन आया।  शुरू में तो थोड़ी हैरानी हुई।  दरअसल उस वक़्त वहाँ आधी रात होती है।  सोचा कहीं किसी परेशानी में तो नहीं फंस गया? मन में घुमड़ती भावनाओं को काबू करते हुए फ़ोन उठाया।  "हेलो, क्या कर रही हो ?" उधर से उसकी बहुत ही नॉर्मल आवाज़ आई।
"ऑफिस में हूँ।  तुमने इस वक़्त कैसे कॉल किया ?" मैंने पूछ ही लिया। "अरे यार क्या बताऊँ ? तुम्हे तो पता ही है कि मम्मी-पापा आये हुए हैं।  और आज यहाँ थैंक्स गिविंग की रात को पूरी रात शौपिंग होती है।  अब शौपिंग तो सबने कर ली, मई बिल काउंटर कि लाइन में लगा हुआ हूँ। "
यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि शिशिर की पत्नी थोड़ी सी उग्रवादी किस्म की है।  मम्मी-पापा के आने के नाम से उनके यहाँ बहुत तांडव हुआ था।  खैर, मैंने पुछा, " शौपिंग कि वजह से कोई कलह तो नहीं हुआ?"
"यार तुमसे क्या छिपाना।" वह ठंडी आवाज़ में बोला।  "शौपिंग करते वक़्त मम्मी सभी के लिए कुछ न कुछ लेना चाहती थीं।  इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन वो पहले भी दीदी-जीजाजी और भैया-भाभी के लिए बहुत कुछ ले चुकी हैं। यहाँ आकर जब वो फिर से जीजाजी के लिए जैकेट वगैरह लेने लगीं तो वो (उसकी पत्नी ) चिढ गई।  मम्मी को तो कुछ नहीं बोला, लेकिन मुझसे बोली की इतना खर्च करने कि क्या ज़रूरत है?"
उसकी बात मुझे न जाने क्यों इस बार गलत नहीं लगी।  आखिर गृहस्थी उसी को चलानी होती है।  बेपरवाह खर्च करने से दिक्कत उसी को होगी।  "तुम मम्मी को क्यों नहीं समझाते?" मैंने शिशिर से कहा।  "अरे यार वो भी तो कम नहीं हैं।  ज़रा सा बोला था तो कहने लगीं कि पैसे हमसे ले लेना।  मई तो बीच में फंसकर रेह गया हूँ।
शिशिर की बात से मुझे अंदाज़ा हुआ कि पेरेंट्स भी कभी कभी बच्चों से कम नहीं होते।  बजाय बेटे की परेशानी समझने के वे बुरा मान जाते हैं।  बेचारा लड़का बीवी और माँ के बीच फंस जाता है।  ऐसा नहीं है कि शशिर को अपने दीदी-जीजाजी से प्यार नहीं है।  उसने बताया की जीजाजी के लिए पहले ही दो जैकेट्स और काफी सामान ख़रीदा जा चुका  है।  यही नहीं वो मम्मी-पापा के आने से पहले ही दीदी और भैया को आई फ़ोन भिजवा चूका है।  और इस बार भाभी ने भी इसी फ़ोन कि फरमाइश भेजी है।
मैं सोच में पड़ गई कि आखिर इसमें उसकी क्या गलती है।  बाहर काम करने का मतलब ये नहीं होता न कि इंसान के पास पैसों कि झड़ी लग जाती है।  उसका परिवार है जिनपर खर्च होता है।  और मम्मी-पापा के ट्रिप पर उसके पहले ही काफी पैसे खर्च हो चुके हैं।  ऐसे में सभी को उसके बारे में भी तो थोडा सोचना चाहिए।  लेकिन शायद बेटे होने के नाते उसे इसी तरह खर्च करते हुए अपने माता पिता को थैंक्स कहना होगा।

खैर यहाँ बैठे तो मई उसकी क्या ही मदद कर पाऊँगी ? लेकिन अपनी डायरी से तो ये बातें कही ही जा सकती हैं।